Sunday, April 22, 2018

story of panchtantra in hindi

1.
नाग और चीटियांएक घने जंगल में एक बड़ा-सा नाग रहता था। वह चिड़ियों के अंडे, मेढ़क तथा छिपकलियों जैसे छोटे-छोटे जीव-जंतुओं को खाकर अपना पेट भरता था। रातभर वह अपने भोजन की तलाश में रहता और दिन निकलने पर अपने बिल में जाकर सो रहता। धीरे-धीरे वह मोटा होता गया। वह इतना मोटा हो गया कि बिल के अंदर-बाहर आना-जाना भी दूभर हो गया।

आखिरकार, उसने बिल को छोड़कर एक विशाल पेड़ के नीचे रहने की सोची लेकिन वहीं पेड़ की जड़ में चींटियों की बांबी थी और उनके साथ रहना नाग के लिए असंभव था। सो, वह नाग उन चींटियों की बांबी के निकट जाकर बोला, ‘‘मैं सर्पराज नाग हूँ, इस जंगल का राजा। मैं तुम चींटियों को आदेश देता हूं कि यह जगह छोड़कर चले जाओ।''
वहां और भी जानवर थे, जो उस भयानक सांप को देखकर डर गए और जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे लेकिन चींटियों ने नाग की इस धमकी पर कोई ध्यान न दिया।
वे पहले की तरह अपने काम-काज में जुटी रहीं। नाग ने यह देखा तो उसके क्रोध की सीमा न रही।
वह गुस्से में भरकर बांबी के निकट जा पहुँचा। यह देख हजारों चींटियाँ उस बांबी से निकल, नाग से लिपटकर उसे काटने लगीं। उनके डंकों से परेशान नाग बिलबिलाने लगा। उसकी पीड़ा असहनीय हो चली थी और शरीर पर घाव होने लगे। नाग ने चींटियों को हटाने की बहुत कोशिश की लेकिन असफल रहा। कुछ ही देर में उसने वहीं तड़प-तड़प कर जान दे दी।

शिक्षा- बुद्धि से कार्य करने पर शक्तिशाली शत्रु को भी ध्वस्त किया जा सकता है।

2.नीतिवान सन्यासी 

एक जंगल में हिरण्यक नामक चूहा तथा लघुपतनक नाम का कौवा रहता था। दोनों में प्रगाढ़ मित्रता थी। लघुपतनक हिरण्यक के लिए हर दिन खानें के लिए लाता था । अपने उपकारों से उसने हिरण्यक को ॠणी बना लिया था । एक बार हिरण्यक ने लघुपनक से दुखी मन से कहा-- इस प्रदेश में अकाल पड़ गया है। लोगों ने पक्षियों को फँसाने के लिए अपने छतों पर जाल डाल दिया है। मैं किसी तरह बच पाया हूँ। अतः मैंने इस प्रदेश को छोड़ने का निश्चय किया है।

लघुपनक ने बताया-- दक्षिण दिशा में दुर्गम वन है, जहाँ एक विशाल सरोवर है। वहाँ मेरा एक अत्यंत घनिष्ट मित्र रहाता है। उसका नाम मंथरक कछुआ है। उससे मुझे मछलियों के टुकड़े मिल जाया करेंगे।

हिरण्यक ने विनती की कि वह भी लघुपतनक के साथ वहीं जाकर रहना चाहता है। लघुपतनक ने उसे समझाने की कोशिश की कि उसे अपनी जन्मभूमि व सुखद आवास को नहीं छोड़ना चाहिए। इस पर हिरण्यक ने कहा कि ऐसा करने का कारण वह बाद में बताएगा।

दोनों मित्रों ने साथ जाने का निश्चय किया। हिरण्यक लघुपतनक के पीठ पर बैठकर उस सरोवर की ओर प्रस्थान कर गया। निश्चित स्थान पर पहुँचकर कौवे ने चूहे को अपनी पीठ पर से उतारा तथा तालाब के किनारे खड़े होकर अपने मित्र मंथरक को पुकारने लगा।

मंथरक तत्काल जल से निकला। दोनों एक- दूसरे से मिलकर प्रसन्नचित थे। इसी बीच हिरण्यक भी आ पहुँचा। लघुपनक ने मंथरक से हिरण्यक का परिचय कराया तथा उसके गुणों की प्रशंसा भी की।

मंथरक ने भी हिरण्यक से उसके जन्मस्थान से वैराग्य का कारण जानना चाहा। दोनों के आग्रह को सुनकर हिरण्यक अपनी व्यथा कथा सुनाने लगा।

नगर के बाहर स्थित शिव मंदिर में ताम्रचूड़ नामक एक सन्यासी रहता था। वह नगर में भिक्षा माँगकर सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। खाने- पीने से बचे अन्न- धान्य को वह प्रत्येक दिन एक भिक्षा पात्र में डालकर रात्रि में खूँटी पर लटकाकर सो जाया करता था। सुबह- सुबह उसे मंदिर के बाहर बैठे भिखारियों में बाँट देता था। इस सब बातों की सूचना हिरण्यक को भी मिली। उसे यह भी पता चला कि ये स्वादिष्ट सामग्री ऊँचाई पर होने के कारण अन्य चूहों को दिक्कत होती है।

हिरण्यक ने बताया कि अपने साथी की बात सुनकर एक रात मैं वहाँ आया तथा खूँटी पर लटकी हाँडी पर छलांग लगा दिया तथा हाँडी को नीचे गिरा दिया तथा साथियों के साथ स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया। अब यह हमारा हर रात का नियम सा बन गया।

परेशान होकर सन्यासी एक फटे बांस का डंडा लेकर आया। डंडे की आवाज से हमलोग डर जाते थे, लेन उसके सो जाते ही पुनः हंडिया साफ कर देते थे।

एक बार सन्यासी का मित्र वृहतस्फिक तीर्थाटन के उपरांत उससे मिलने आया। रात में सोते समय वृहतस्फिक ने ताम्रचूड़ को अपने तीर्थ का विवरण सुनाने लगा। इस दौरान भी ताम्रचूड़ फटे बाँस का डंडा बजाता रहा, जिससे वृहतास्फिक को बुरा लगा। तब ताम्रचूड़ ने उसे डंडा बजाने की असली वजह बताई।

वृहतस्फिक ने जिज्ञासा दिखाते हुए पूछा-- चूहे का बिल कहाँ है ? ताम्रचूड़ ने अनभिज्ञता दर्शायी लेकिन यह स्पष्ट था कि जरुर ही यह बिल किसी खजाने पर है। धन की गरमी के कारण ही यह चूहा उतना अधिक ऊँचाई तक कूद सकता है। वृहतास्फिक ने एक कुदाल मँगवाया तथा निश्चित होकर रात में दोनों सो गए।

हिरण्यक ने सुनाना जारी रखा। प्रातःकाल वृहतास्फिक अपने मित्र के साथ हमारे पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए हमारे बिल तक आ ही पहूँचे। किसी तरह मैंने अपनी जान बचा ली, परंतु अंदर छिपे कोष को निकाल लिया। कोष के लूट जाने से मेरा उत्साह शिथिल हो गया। इसके बाद मैंने उस खूँट तक पहुँचने की कई बार कोशिश की, लेकिन वह असफल रही।

मैंने धन को पुनः प्राप्त करने की कई कोशिश की, लेकिन कड़ी निगरानी के कारण मुझे वापस नहीं मिल पाया। इस कारण मेरे परिजन भी मुझसे कन्नी काटने लगे थे। इस प्रकार मैं दरिद्रता तथा अपमान की जिंदगी जी रहा था।

एक बार मैंने पुनः संकल्प लिया। किसी तरह तकिये के नीचे रखे धन को ला रहा था कि वह दुष्ट संन्यासी की निद्रा भंग हो गयी। उसने डंडे से मेरे ऊपर भयंकर प्रहार किया। मैं किसी तरह जीवित बच पाया। जान तो बच गयी, लेकिन परिवार के लोगों के साथ रहना सम्मानजनक नहीं लगा। और इसीलिए मैं अपने मित्र लघुपतनक के साथ यहाँ चला आया।

हिरण्यक की आप बीती सुनकर मंथरक ने कहा-- मित्र नि:संदेह लघुपतनक आपका सच्चा व हितैषी मित्र है। संकट काल में साथ निभानेवाला ही सच्चा मित्र होता है। समृद्धि में तो सभी मित्र होते हैं।

धीरे- धीरे हिरण्यक भी अपने धन की क्षति को भूल गया तथा सुखपूर्वक जीवन यापन करने लगा।
   3  .चतुर खरगोश  
एक बड़े से जंगल में शेर रहता था। शेर गुस्‍से का बहुत तेज था। सभी जानवर उससे बहुत डरते थे। वह सभी जानवरों को परेशान करता था। वह आए दिन जंगलों में पशु-पक्षियों का शिकार करता था। शेर की इन हरकतों से सभी जानवर चिंतित थे। 
एक दिन जंगल के सभी जानवरों ने एक सम्‍मेलन रखा। जानवरों ने सोचा शेर की इस रोज-रोज की परेशानी से तो क्‍यों न हम खुद ही शेर को भोजन ला देते हैं। इससे वह किसी को भी परेशान नहीं करेगा और खुश रहेगा। 

सभी जानवरों ने एकसाथ शेर के सामने अपनी बात रखी। इससे शेर बहुत खुश हुआ। उसके बाद शेर ने शिकार करना भी बंद क‍र दिया। 

एक दिन शेर को बहुत जोरों से भूख लग रही थी। एक चतुर खरगोश शेर का खाना लाते-लाते रास्‍ते में ही रुक गया। फिर थोड़ी देर बाद खरगोश शेर के सामने गया। शेर ने दहाड़ते हुए खरगोश से पूछा इतनी देर से क्‍यों आए? और मेरा खाना कहां है? 

चतुर खरगोश बोला, शेरजी रास्‍ते में ही मुझे दूसरे शेर ने रोक लिया और आपका खाना भी खा गया। शेर बोला इस जंगल का राजा तो मैं हूं यह दूसरा शेर कहां से आ गया। 

खरगोश ने बोला, चलो शेरजी मैं आपको बताता हूं वो कहां है। शेर खरगोश के साथ जंगल की तरफ गया। चतुर खरगोश शेर को बहुत दूर ले गया। खरगोश शेर को कुएं के पास ले गया और बोला शेरजी इसी के अंदर रहता है वह शेर। 

शेर ने जैसी ही कुएं में देखा और दहाड़ लगाई। उसे उसी की परछाई दिख रही थी। वह समझा दूसरा शेर भी उसे ललकार रहा है। उसने वैसे ही कुएं में छलांग लगा दी। इस प्रकार जंगल के अन्य जानवरों को उससे मुक्ति मिली और खरगोश की सबने खूब सराहना की।



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